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Hindi Short Story Chhat By M.Mubin


कहानी    छत           लेखक  एम मुबीन   

घर आकर उसने कपड़े उतारे भी नहीं थे कि नसरीन ने दबे स्वर में आवाज़ लगाई.
"पानी आज भी नहीं आया. घर में पीने के लिए भी पानी नहीं है." नसरीन की बात सुनते ही झुंझला कर क्रोध से उसने नसरीन  की ओर देखा फिर विवश्‍ता  से पलंग पर बैठ गया.
"इतना भी पानी नहीं है कि आज का काम चल जाए?"
"नहीं...!" नसरीन ने धीरे से उत्‍तर  दिया और अपना सिर झुका लिया. "अगर एक कैन  भी पानी मिल जाए तो काम चल जाएगा. कल पानी जरूर आएगा. इस समय सामने वाली आबादी में पानी आता है. झोपडपटटी की  अन्य महिलाएं वहां से पानी ला रही हैं. "
"अन्य महिलाएं वहां से पानी ला रही हैं, परंतु तुम नहीं ला सकतीं क्योंकि तुम एक व्हाइट कॉलर जॉब वाले आदमी की पत्नी हो." उसने सोचा और फिर धीरे से बोला.
"ठीक है कैन  मुझे दो में पानी लाता हूँ."
ऑफिस से आया तो इतना थक गया था कि उसका दिल चाह रहा था वह बिस्तर पर लेट कर सारी दुनिया से बेखबर हो जाए. परंतु नसरीन ने जो समस्या पेश की थी    एकउेसी  समस्या थी जिससे वह दो दिनों से आंख चुरा रहा था .. अब उस से आंख चुराने ना मुमकिन था.
उस गंदी बस्ती को जिस पाइप लाइन से पानी सप्लाई होता था उसका पाइप फट गया था और तीन दिनों से नलों में पानी नहीं आ रहा था. शिकायत की गई थी परंतु उत्तर दिया गया था कि काम चल रहा है. काम समाप्‍त  हो जाएगा तो सामान्य से एक घंटा अधिक पानी दिया जाएगा. काम चीन्टी की गति से चल रहा था कब समाप्त होगा कोई कह नहीं सकता था और कब पानी आएगा कहा नहीं जा सकता था.
झोपड पट्टी का मामला था. म्युन्‍सपलटी  वाले झोंपड़्टीपट को पानी आपूर्ति करने की जिम्मेदारी निभाने के जिम्‍मेदार नहीं थे. क्योंकि उनकी नज़र में वह झुग्‍गी बस्‍ती  अवैध है. उस झोपडपट्टी में अवैध ढंग से रिश्वत देकर नल के कनेक्शन दिए गए हैं. नगरपालिका  चाहे तो उन सभी कनेक्शनों को काट कर पानी की आपूर्ति बंद कर सकती है. परंतु मानवता के नाते उस बस्ती को पानी सप्लाई कर रही थी. इसलिए उस बस्ती के लोगों को नगरपालिका  वालों का आभारी होना चाहिए. कानून की भाषा में बात करने के बजाय विनंती  से अनुरोध करना चाहिए. तब नगरपालिका  के उच्च अधिकारी उनकी परेशानियों के बारे में गंभीरता से विचार करेंगे.
हाथ में बीस लीटर पानी का कैन ले कर वह क्रान्ति  नगर की पुर पेच गलियों से होता सड़क पर आया और सड़क पार कर दूसरी बस्ती में. उस बस्ती में वह कोई ऐसा नल खोज करने लगा जहां उसे पानी मिल सके. हर नल पर भीड़ थी. नलों पर पानी भरने वाली अधिकतर क्रन्ति नगर की महिलाएं ही थीं.
एक नल पर उसे एक पहचान की औरत दिखाई दी. उसने उसका कैन भर दिया तो वह कैन  उठा कर घर की ओर चल पड़ा. बीस लीटर का कैन  उठा कर घर की ओर जाना कोई आसान काम नहीं था. बार बार हाथ शल हो जा रहे थे और संतुलन बिगड़ जा  रहा था. बिगड़ते संतुलन से ऐसा लगता जैसे वे गिर पड़ेगा.
जब भी ऐसी स्थिति उसे महसूस होता वह जल्दी से कैन एक  हाथ से दूसरे हाथ में ले लेता. इस तरह शल होते हाथ को आराम मिल जाता और उसका संतुलन भी बरकरार रहता.
ख़ुदा ख़ुदा करके वह सड़क पार करता हुआ क्रन्ति  नगर की सीमा में प्रवेश हुआ. अब इस कैन  को घर तक ले जाना सबसे बड़ी परीक्षा थी. क्रन्ति  नगर की पुर पेच गलियाँ, जगह जगह बहता गंदी गटरों का पानी, ऊंचे नीचे रास्तों से होकर गुजरना किसी स्टंट से कम नहीं था. दिल में आया कि कैन  को या तो कंधे पर रख ले या फिर सिर पर उठा ले, परंतु स्‍वंय  इस बात पर शर्माया  कि आस पास के लोग उसे इस हालत में देखेंगे तो हँसी हैं .
"अनवर साहब कैन सिर पर उठा के पानी भर रहे हैं."
इसलिए उसने कैन  हाथों में ले जाना ही उचित समझा.
गंदी गटरों के पानी और ऊँचे नीचे तंग रास्तों पर वह संभल संभल कर कदम रख रहा था. मगर सारी मेहनत बेकार गई. अचानक एक जगह पर पैर फिसल और हाथ में बीस लीटर का कैन था वह अपना संतुलन बनाए नहीं रख सका और धड़ाम से गिर गया. जहां वह गिरा था उस जगह   गंदा पानी उबल कर जमा हुआ था. वह सारा बदबू दार गंदा पानी उसके शरीर और कपड़ों से लिपट गया.
गिरते गिरते उसने कैन  को बचा लिया. उस समय वह पानी के लिए जान से ज्यादा कीमती था. उसने कैन  को ऐसे अंदाज में उठाए रखा कि पानी न गिर सके और वह इस प्रयास में सफल रहा. वापस उठकर उस ने पानी का कैन उठाया और घर की ओर चल दिया. शरीर पर कई स्‍थानों पर घाव थे और वे उसके अंगारे बने हुए थे परंतु इसके  बावजूद   वह कैन उठाए आगे बढ़ रहा था.
आसपास के लोग उसकी हालत देख कर हंस देते और अनुमान लगा लेते कि उसके साथ क्या हुआ है. परंतु फिर भी वह प्रसन्न था. उसे इतना पानी तो मिल गया कि आज का काम चल जाए घर आकर उसने कपड़े बदले और नहाने के लिए बैठा तो याद आया कि उसके नहाने के लिए पानी कहां   है.  बचत का सबूत देते हुए एक दो लीटर पानी से अपने शरीर पर लगी गंदगी साफ की.
रात में उस पर दोहरा प्रकोप    था. गिरने की वजह से उसके शरीर पर जो ख़राशें और घाव थे दर्द कर रहे थे और बिजली भी नहीं थी. घर भट्टी बना हुआ था. हाथों से पंखा झल कर वह और नसरीन  गर्मी दूर करने की कोशिश कर रहे थे परंतु फिर भी आराम नहीं मिल रहा था. घबरा कर वह दरवाज़े के बाहर चादर बिछा कर लेट गया. बाहर उसे अंदर की तुलना थोड़ा आराम महसूस हुआ. परंतु पास की गटर की बदबू उसका मस्तिष्‍क फाड़ रही थी और भनभनाते मच्छर उसे काटते तो उसके मुंह से सिसकी निकल जाती.
बिजली कब आएगी कुछ कहा नहीं जा सकता था बिजली के बिना नींद नहीं आएगी. कल ड्यूटी जाना है. अगर वह ठीक तरह से सो नहीं सका तो भला फिर ड्यूटी कैसे अंजाम देगा.
यह कोई नई बात नहीं थी. अक्सर आधी रात को बिजली चली जाती थी और उसे उसी प्रकोप  को सहन  करना पड़ता था प्रकोप  में उस समय पीड़ित था. आंखों में सारी रात गुज़र जाती थी. परंतु बिजली नहीं आती थी. सवेरा हो जाता तो ड्यूटी पर जाने की तैयारियां करनी पड़ती. आंखें नींद से बोझल होती परंतु सो नहीं सकते थे क्योंकि ड्यूटी जाना था. ऑफिस आता तो नींद से पलकें बोझल होने लगतीं, कोई काम नहीं होता और गलत   काम होते तो बॉस की डान्टीं सुननी पड़तें.
नसरीन ने वैसे तो कभी प्रशन   या शिकायत नहीं की थी कि उसने क्रन्ति नगर में ही घर क्यों लिया है. क्योंकि वे उसकी मजबूरी जानती थी. उसे मौजूदा परिस्थितियों में क्रान्ति नगर के अलावा कहीं घर मिल ही नहीं सकता था. क्योंकि इसमें क्रान्ति नगर के अलावा कहीं और घर लेने की वित्तीय ताकत नहीं थी.
कभी सोचता कि उसने विवाह करने में जल्दी कर ग़लती की क्रान्ति नगर में घर लेकर कोई गलती नहीं की है. विवाह  देर से करता तो परेशानियों का सामना तो नहीं करना पड़ता. नौकरी मिली तो सबसे पहला मुद्दा एक छत का पैदा हुआ. एक छत की शिद्दत से जरूरत महसूस हुई जिसके नीचे सिर छुपा सके. दो चार दिन इधर उधर गुज़ार कर छत की खोज शुरू हुई. उसे महसूस हुआ नौकरी उसे जितनी आसानी से मिल गई थी छत उसे इतनी आसानी से मिलनी संभव नहीं थी .
शहर में इस तरह हजारों लाखों लोग छत के खोजकर्ता और वह छत के लिए हजारों लाखों रूपये देने को तैयार हैं. परंतु उसकी हैसियत के अनुसार क्रान्ति  नगर में ही छत मिल सकी.
क्रान्ति  नगर एक झोपड़्पटटी  थी. किसी की ज़मीन पर एक दादा ने अवैध कब्जा कर लकड़ी के टुकड़ों, पतरों कई झोपड़ी बनाए थे और उन्हें किराए पर दे रखा था और उनका किराया वसूल करता था. वह झोपडपटटी  अवैध थी और कभी भी टूट सकती थी. परंतु दाऊद भाई का कहना था कि पिछले पांच सालों से यहाँ रह रहा हूँ और पाँच सालों से सुन रहा हूँ कि झोपडपटटी टूटने वाली है मगर अभी तक नहीं टूट सका और अब मुझे विश्वास है अगले दस सालों तक यह झोपडपटटी नहीं टूट सकती.
उसने क्रान्ति नगर में खोली दाऊद भाई के द्वारा प्राप्त की थी. दाऊद भाई की क्रान्ति  नगर में किराने की दुकान थी किसी ने उससे कहा था कि अगर उसे वहां  खोली चाहिए तो दाऊद भाई से मिल लेना वह सब कुछ कर देंगे .
वह दाऊद भाई से मिला अपना परिचय दिया और अपनी समस्या पेश किया. "आप इस क्षेत्र में रूम चाहते हैं, रूम तो मिल जाएगा. परंतु मैं समझता हूँ कि यह क्षेत्र आपके लिए उपयुक्त नहीं है. आपकी मजबूरी को समझता हूँ . मुझे पता है आप किस मजबूरी के तहत इस झोपडपटटी में खोली ले रहे हैं. आप जैसे कई लोग इससे पहले इसी मजबूरी के तहत यहां वर्ष दो वर्ष रह कर गए हैं. साल दो साल में उनके पास पैसा जमा हो गया उन्हें अच्छी जगह अच्छा रूम मिल गया फिर वह यह बस्ती छोड़ कर चले गए. अनवर भाई आप घबराइए  नहीं. आप भी ऐसा करें. अस्‍थई  तौर पर रूम ले लीजिए. बाद में उससे अच्छा रूम मिल जाएगा तो उसे छोड़ दीजिए."
दस हजार रुपये डपाज़ट और ढाई सौ रुपए महीना पर उसे x1012 का एक कमरा मिला जिसकी छत पतरे की थी. नल और बिजली की उसमें व्यवस्था था. दस हजार रुपये उसने घर वालों से ऋण के रूप में प्राप्त किए और रूम  ले लिया वह कमरा लेकर वहां रहने लगा तो उसे वहां कुछ भी अजनबी नहीं लगा. वैसे भी वह सवेरे जो ऑफिस जाता तो शाम को ही घर आता था. अपनी छत के नीचे सिर छिपाने के लिए. दिन भर वहां क्या हो रहा है. उसे कुछ पता नहीं चलता था. रात में कभी कभी आसपास के लोगों के साथ एक आध घंटा बैठकर बस्ती की ख़ैर व खबर पता कर लेता. या बस्ती में होने वाले झगड़ों को तमाशाई बन कर देख लेता था.
कभी पानी पर  भीकू और चन्दू का झगड़ा हो गया. कभी भोला दित्ता राम से अकारण उलझ गया. कभी दशरथ रात शराब पी कर आया और उसने सारी बस्ती को सिर पर उठा लिया. काशी राम की पत्नी को जाधव ने छेड़ा था इसलिए गुस्से में काशी राम ने जाधव को इस्त्री मार दिया. धेत्रे की पत्नी अपने से दस साल छोटे लड़के के साथ भाग गई. वाघमारे की पत्नी कालू के बिस्तर में रंगे हाथों पकडी गई. शराब के नशे में धुत अशोक सुरेश के घर में घुस गया और उसकी पत्नी के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की.
वह सारी बातें बड़ी रुचि से सुनता और उनसे आनंद होता था. उसका वहां दिल लग गया था. फिर घर वालों को उसकी विवाह  की सूझ वह भी विवाह  के लिए तैयार हो गया. घर वालों का मानना था कि वह कब तक होटल में खाता रहेगा. पत्नी घर आ जाएगी तो यह समस्या भी हल हो जाएगा और इस अजनबी शहर में एक साथी सहयोगी और मित्र भी मिल जाएगा.
विवाह  हो गया. नसरीन घर में आई और जैसे उस पर समस्याओं ने एक साथ हमला कर दिया. विवाह  के बाद उसे मालूम हुआ था कि बस्ती में कभी कभी तीन तीन दिनों तक पानी नहीं आता है. और बस्ती के लोगो ंको पानी के लिए मारे मारे फिरना पड़ता है.
मिट्टी का तेल कितनी मुश्किलों से मिलता है. उससे तो चूल्हा जलता है जिस पर खाना पकता है. अगर वह न मिले तो चूल्हा नहीं जल सकता और खाना भी नहीं पक सकता था और नमक लाने के लिए दाऊद भाई की दुकान तक जाना पड़ता है . यदि ताज़ा माल चाहिए तो सब्जियां लाने के लिए शहर में सब्ज़ी बाज़ार तक जाना पड़ता है. सब्ज़ी बाज़ार में ताज़ा तरकारी  मिलती हैं. क्रान्ति नगर में जो तरकारियां  मिलती हैं वह बासी और महंगी होती हैं. अगर अचानक कोई बीमार हो जाए तो दिन में भी क्रान्ति नगर में डॉक्टर नहीं मिलता है. डॉक्टर के लिए शहर जाना पड़ता है. दिन में शराबी आवारा बदमाश घरों में घुस जाते हैं और घर की महिलाओं को छेड़ने हैं. गुंडे बदमाशों की खोज में कभी कभी पुलिस बस्ती में आती है तो बस्ती महिलाओं के साथ अभद्र  व्यवहार करती है.
इन सभी समस्याओं से कुछ हल निकल आए थे कुछ समाधान बाकी थे. जब कभी नसरीन  उसे बताती कि आज एक शराबी घर में घुस आया था तो वह सिर से पैर तक पसीने में नहा जाता था. उसका हल तो निकल आया था. उसने आसपास की महिलाओं को कह दिया था कि उसकी गैर मौजूदगी में वह नसरीन  का ध्यान रखें. वह इतनी निष्ठा थी कि नसरीन एक आवाज़ पर दौड़ी आती थीं. इस तरह नसरीन को किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता था.
जीवन किसी प्रकार गुजर रही थी कि अचानक एक नई संकट  खड़ी हो गई. जिस व्यक्ति की जमीन पर अवैध कब्जा कर वह झोपड़ी बस्ती बसायी थी. उसके गुंडे आकर लोगों को तंग करने लगे कि वे झोपड़ी खाली कर दें वरना वह उनके साथ सख्ती से पेश आएंगे. उस व्यक्ति ने शायद नगरपालिका  को भी मिला लिया   था. इसलिए अक्सर नगरपालिका  के छोटे बड़े अधिकारी, कर्मचारी आकर बस्ती वालों को धमकी दिया करते थे कि बस्ती खाली कर दें. क्योंकि यह एक अवैध बस्ती है. नगरपालिका  कभी भी आकर उस बस्ती को बुलडेाजर  से ध्वस्त कर देगी. बस्ती में ज्यादातर जाहिल अनपढ़ लोग थे. जो कानून की भाषा नहीं समझते थे और जो पढ़े लिखे थे झमेले में पड़ना नहीं चाहते थे.
उसे भी चिंता   होने लगी कि अगर किसी दिन नगरपालिका  ने बस्ती तोड़ दी तो उसके दस हजार रुपये डूब जाएंगे जो उसने ि‍डपाज़ट के रूप में दिए हैं. इस संबंध में दाऊद भाई से बात की तो दाऊद भाई ने उसे समझाया.
" देखिए आप चिंता नहीं करे . जिस व्यक्ति ने आपसे ि‍डपाज़ट लिया है जो किराया प्राप्त करता है और जिसने यह बस्ती बसायी है वह भी माना हुआ गुण्डा है. ज़मीन के मालिक के छोड़े हुए गुण्डों से वह निपट लेगा. जहां तक नगरपालिका  वालों का प्रशन   है उन्हें इस तरह की कानून की भाषा प्रयोग करने का अधिकार नहीं है. क्योंकि यह झोपडपटटी निजी भूमि पर आबाद है सरकारी ज़मीन पर नहीं है. इसलिए नगरपालिका  उसे तोड़ नहीं सकती फिर जिस नगरपालिका  के कर्मचारियों ने रिश्वत लेकर उस बस्ती के नल कनेक्शन दिए. बिजली कनेक्शन दिए वह क़ानून और गैर कानून की बात कैसे कर सकते हैं. ‘’
दाऊद भाई की बात समझ में आ गई थी. दाऊद भाई ने तो यहाँ तक कहा था कि अगर आपको शक है तो आप अपने ि‍डपाज़ट का पैसा वापस लेकर खोली खाली कर दें.
वह खोली खाली नहीं कर सकता था. क्योंकि दूसरी जगह घर प्रबंधन असंभव था उसके पास इतना पैसा नहीं था. फिर वह अपने आप को इस छत के नीचे बहुत सुरक्षित समझता था. वह अपने लिए इतनी जल्दी दूसरी छत का प्रबंधन नहीं कर सकता था फिर भला यह छत कैसे छोड़ सकता था.
इन समस्याओं को देखते हुए उसने तय कर लिया था कि अब जल्द ही यह जगह छोड़ देगा. यह जगह उसके जैसे शरीफ़ आदमी योग्य नहीं है. उसने दूसरी जगह खोज करनी शुरू कर दी थी और पेसो का  प्रबंधन करना भी शुरू कर दिया था. एक रात एक शोर सुनकर उसकी आंख खुली तो वह अचानक घबरा गए. उन्हें लगा जैसे उनके कक्ष नरक का एक हिस्सा बन गया है. वह घबरा कर जब बाहर आए तो उन्होंने देखा कि पूरी बस्ती आग की लपटों में घिरी हुई है लोग अपनी जानें बचा कर भाग रहे हैं. अपनी संपती जीवन को आग से बचाने की कोशिश कर रहे थे.
आग बढ़ती जा रही है. क्योंकि बस्ती के घर कच्चे थे, इसलिए इस आग को बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता था. आग बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को फोन किया गया था. परंतु इसका भी नाम व निशान नहीं था. शायद यह भी आग लगाने वालों और फायर ब्रिगेड की मिली भगत थी.
आग उनके घरकी ओर बढ़ रही थी. इसलिए उन्होंने अपने सामान  को बचाने की कोशिश शुरू कर दी. अब थोड़ा सा सामान ही बचा पाया  था कि आग ने उनके घर को अपनी लपेट में ले लिया और देखते ही देखते उनका घर जल कर ख़ाक हो गया.
वह दूर मैदान में अपना थोड़ा सा बचा हुआ सामान  लिए बैठे थे. सामने पूरी जली हुई बस्ती दिखाई दे रही थी. जिससे धुआँ उठ रहा था. वह हसरत से कभी जली हुई बस्ती को देखते तो कभी आसमान को.
उनके सिर की छत छीनी जा चुकी थी. अब उनके सिर पर केवल आसमान की छत थी.
  अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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