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Hindi Short Story Devta By M.Mubin


कहानी       देवता   लेखक  एम मुबीन   

डॉक्टर ऑपरेशन रूम से निकलते ही चारों ओर से लोगों ने उसे घेर लिया.
"डाक्टर साहब! मामा की हालत अब कैसी है?" विश्वास गाईकोाड़ ने पूछा.
"डाक्टर साहब! मामा जीवन तो अब कोई ख़तरा नहीं है?" अरुण शनदे ने पूछा.
"डाक्टर साहब मामा जल्दी अच्छे हो जायेंगे ना? जल्दी बताइए मेरा दिल बहुत घबरा रहा है." शंकर पाटिल ने बेचैनी से पूछा.
"डाक्टर साहब! मामा यहां अच्छे हो जायेंगे ना?" गोपीनाथ महस्क्र ने पूछा. "उन्हें कहीं और ले जाने की तो जरूरत नहीं आएगी? अगर जरूरत हो तो बता दीजिए हमने उन्हें कहीं और ले जाने की व्यवस्था भी कर लिए हैं. "
"डाक्टर साहब बाहर से यदि दवाएं मंगोाने की जरूरत पड़ी तो बे झिझक कह दीजिए. मामा के लिए हम महंगी से महंगी दवाएं लाने के लिए तैयार हैं." प्रकाश जाधव बोला.
डॉक्टर घबरा गया. उसे उस समय कम से कम बीस पच्चीस लोगों ने घेर रखा था और उसे पता था उस समय अस्पताल के कंपाउंड में कम से कम सौ सवा सौ लोग मामा की तबियत के बारे में जानने के लिए बेचैन हैं.
वे पीड़ा  जवार के गांवों से आए हुए थे. कोई नगर सिविल से आया था तो कोई अंदर सिविल कोई लहीत से कोई ग्राहक से तो कोई राजा जयपुर से. उनमें से बहुत से लोग एक दूसरे से ननवा थे तो बहुत से लोग एक दूसरे से पहली बार मिल रहे थे.
वे सभी व्यक्ति एक ही उद्देश्य के लिए इकट्ठा हुए थे. वह सब मामा की स्थिति के बारे में पता लगाने वहाँ आए थे और उसी के लिए बेचैन थे. उनमें बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने मामा को लाकर अस्पताल में भर्ती किया था.
जैसे मामा पर कातिलाना हमले की खबर फैल रही थी और यह मालूम हो रहा था मामा को इलाज के लिए शहर के अस्पताल में भर्ती किया गया है, लोग जूक दर जूक मामा को देखने के लिए आ रहे थे.
जब वह लोग घायल मामा को लेकर सरकारी अस्पताल जा रहे थे तो रास्ते में जो भी मिलता वहां जैसे ही यह खबर मिलती कि मामा पर कातिलाना हमला हुआ है और वह बुरी तरह घायल हुए हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है. इस गाँव कई लोग आकर उनके साथ हो जाते जो मामा को अस्पताल ले जा रहे थे.
जब मामा को अस्पताल में भर्ती कराया गया उस समय पचास के समीप  लोग अस्पताल में जमा थे. फिर जैसे जैसे यह खबर आसपास के गांवों में फैल गई चारों ओर से लोग मामा की स्थिति का पता लगाने और उसे देखने के लिए अस्पताल में आने लगे .
जब मामा को अस्पताल में भर्ती कराया गया मामा बेहोश था. उसके सारे कपड़े खून से लथपथ थे. जो लोग मामा को सहारा देकर लाए थे उनके कपड़ों पर भी जगह जगह खून लगा हुआ था.
डॉक्टर ने मामा के घाव का मुआयना किया. घाव पीछे था. पूरे डेढ़ फुट लंबा घाव था और लगभग एक इंच गहरा. कहीं कहीं तो गहराई दो इंच हो गई थी. कहीं कहीं हड्डी दिखाई दे रही थी. तलवार का वार था. इसलिए एक दो जगह की हड्डी भी प्रभावित हुई थी. डॉक्टर ने तुरंत मामा को ऑपरेशन वार्ड में ले जाने के लिए कहा.
"घाव बहुत बड़ा और गहरा है टांके लगाने परें है. इसके अलावा खून बहुत बह गया है. खून की भी आवश्यकता पड़ेगी."
"डाक्टर साहब! मेरा खून ले लीजिए."
"डाक्टर साहब! मेरा खून ले लीजिए." तीन चार आवाज़ें एक साथ ाभरें.
"ठीक है हम पहले खून टेस्ट करते हैं. इस के बाद खून की जरूरत महसूस हुई उसका खून ले लेंगे."
लोगों और मामा का खून टेस्ट किया गया. 10. 12 लोगों का खून मामा के खून से मेल खाता था.
जे देव पाटिल, मानक शनदे, आना पवार और विक्रम खेरनार के शरीर से एक एक बोतल खून निकाला गया.
दो बोतल खून चढ़ाने के बाद मामा के शरीर में हल्की सी हरकत हुई. डॉक्टर और नर्सों के चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गई.
"जो खून बह गया था खून ने उसकी कमी पूरी कर दी है. रोगी को बहुत जल्दी होश आ जाएगा. उसे जनरल वार्ड में शिफ़्ट कर दिया जाए." डॉक्टर ने नर्सों से कहा और वार्ड से बाहर निकला तो लोगों ने उसे घेर लिया.
"देखिए मैं ने मामा का घाव सी है. दो बोतल खून भी चढ़ाया गया है. जरूरत पड़ी तो और दो बोतल खून चढ़ा दिया जाएगा. अब मामा खतरे से बाहर हैं. घबराने की कोई बात नहीं. एक दो घंटे में शायद उसे होश आ जाएगा. परंतु होश में आने के बाद आराम की वजह से हम उसे नींद का इंजेक्शन देकर सलादें है. आप लोग रोगी के कमरे में या पलंग के पास भीड़ लगाएँ. रोगी को देखने के लिए हम हैं. चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. आप मामा को देख कर अपने अपने घर चले जाइए.
डॉक्टर इतना कहकर आगे बढ़ गया और लोग मामा के बाहर आने का इंतजार करने लगे. कुछ लोगों ने मामा क रिश्तेदारों को घेर लिया.
"भाबी! हम न कहते थे कि तुम मत घब्रािए. मामा को कुछ नहीं होगा. अब तो आपने अपने कानों से सुन लिया है कि मामा खतरे से बाहर है. अब यह रोना धोना छोड़िए और अपनी स्थिति को संभाला. आपके रोने से बच्चे भी रोने लगते हैं. कुछ मामा की पत्नी को समझाने लगे तो कुछ मामा के बच्चों को.
"अरे फरत (ताज़ग़ी ) क्यों रो रहा है? तेरे अब्बा को कुछ नहीं होगा. वह बिल्कुल ठीक है. थोड़ी देर में हम सबसे बातें करेंगे. तू तो बड़ा है, समझदार है तो रोयेगा तो फिर तेरी माँ, भाई, बहनों और तेरे दादा दादी को कौन समझाए है. तो स्‍वंय  को संभाल. किसी तरह की कोई चिंता न हम तेरे साथ हैं. "
कुछ मामा के माता पिता को समझाने लगे.
"सब कुछ ठीक हो जाएगा. मामा को कुछ नहीं होगा. उनकी जान बचाने के लिए हम अपनी जान की बाजी लगा देंगे."
"मेरे मासूम बच्चे को मार कर उन लोगों को क्या मिला." उनकी बातें सुनकर मामा के पिता बोले. "वह तो किसी की छेड़छाड़ नहीं रहता था. सवेरे भूखा पियासह घर से निकल कर गांव, देहात की धूल छान कर अपने बाल बच्चों और हमारे लिए दो वक़्त की रोटी की व्यवस्था करता था. उन्हें मार उन्हें क्या मिला. वह तो न कोई धार्मिक नेता था और न ही कोई राजनीतिक नेता था फिर उन्होंने मेरे बच्चे की जान लेने की कोशिश क्यों की? "
"अब्बा! कुछ लोग सर फिरे हैं और दीवानगी के लिए वह मानव मूल्यों और रिश्तों को भूल जाते हैं उन पर तो केवल अपने पंथ के विचारों का जुनून तारी रहता है. जिन लोगों ने मामा पर हमला किया वे भी इसी समूह से जुड़े थे. "सबसे मामा के पिता को समझाने लगे.
किसी ने भी सोचा नहीं था कि आज जब मामा उनके गाँव से जाएगा तो उस पर इस तरह का जानलेवा हमला होगा और उसकी जान लेने की कोशिश की जाएगी. आज भी वह सामान्य रूप से गांव आया था. जिस तरह पिछले सालों से आ रहा था.
अपनी साइकिल पर आगे बड़ा सा पिटारी लटकाए हर किसी को सलाम करता उनसे उनकी खैरियत दरयाफ्त करता अपने विशेष ठिकानों पर गया था. उसे पूरे पलकह के गांवों में किस किस घर में मरगयाँ हैं यह पता था. उसने प्रतिदिन  कुछ विशेष गांवों का निशाना बांध लिया था. वह उस दिन इन विशिष्ट गांवों के उन घरों और खेतों में जाता था जहां मरगयाँ थीं. इस घर के मालिकों भी उस दिन मामा का इंतजार करते थे.
सप्ताह भर उनकी मरगयाँ जो अंडे देती थीं वह अंडे वह जमा करते थे और मामा को बेच देते थे. दिन भर मामा इन गांवों से अंडे बटोरता और शाम को शहर आकर मुर्गी अंडे के व्यापार को बेच देता था जो अंडों को मुंबई जैसे बड़े शहरों में बेचता था.
गर्मी के दिनों में अंडे गर्मी से जल्द खराब हो जाते हैं. गर्मी के दिनों में वह अपने विशेष गांवों में सप्ताह में दो बार जाता था. ताकि अंडे खराब न हूं. अपनी टूटी फूटी पुरानी साइकिल पर वह प्रतिदिन तीस चालीस किलोमीटर का सफर तय करता था.
इससे गांव का बच्चा बच्चा परिचित था तो वह भी हर गांव के हर व्यक्ति को जानता था और उन लोगों के घरों के हालात भी जानता था. कभी कभी तो उसे उन लोगों के घरेलू झगड़ों में न्यायाधीश का कर्तव्य भी अदा करना परता था. इस ने गांवों के सैकड़ों झगड़े नपटाए थे. इसके उचित निर्णय पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होता था. हर कोई बड़े सम्मान से फैसलों को स्वीकार कर लेता था. न केवल फ़र्क बल्कि विवाह  ब्याह के मामलों में भी मामा प्रमुख भूमिका निभाता था .
अगर किसी के घर पलकह में कहीं से रिश्ता आता तो वह मामा से इस घर के बारे में जरूर पूछता जहां से रिश्ता आया है. या घर और लड़के के बारे में जानकारी निकालने की जिम्मेदारी मामा पर डाल देता था.
मामा अपनी जिम्मेदारी को बड़ी खुश ढंग से निभाता था. और इतनी जानकारी निष्पादन पहुंचा देता था कि रिश्ते के बारे में फैसला करने में व्यक्ति को कोई दिक्कत पेश नहीं आती थी. कभी कभी उस व्यक्ति का फैसला नकारात्मक होता और मामा को लगता कि वह व्यक्ति निर्णय लेने में कहीं ग़लती कर रहा है तो मामा उसे टोक कर अपना फैसला बता देता था और फिर वही होता था जो मामा का फैसला होता था.
कई बड़े घराने अपनी लड़कियों के संबंध की जिम्मेदारी मामा पर डालते थे. और मामा इस तरह जिम्मेदारी निभाते हुए पिछले 25. 30 वर्षों में हजारों शादियां करवा चुका था.
गांवों की हर विवाह  ब्याह में मामा कर भाग चाहिए थी. लड़के की विवाह  हो या लड़की की. मामा को वही सम्मान दिया जाता था, जो लड़के के पिता को दी जाती थी. हर विवाह  में मामा को ापरना (एक तरह का रूमाल) ज़रूर दिया जाता था. दीवाली दसहरह या होली पर हर घर में मामा को उपस्थिति देनी पड़ती थी. जिस घर वह किसी मजबूरी की वजह से नहीं जा पाता था घर के मैक्केन को शिकायत होती थी बल्कि मामा का हिस्सा सप्ताह तक संभाल कर रखा जाता था. बल्कि कुछ मामलों में तो मामा का हिस्सा उसके घर पहुंचा दिया जाता था.
ईद बकर ईद शब बरात के मौके पर मामा के घर में ग्रामीणों का मेला लगा रहता था. इन तीवहारों के आने से पहले मामा सभी गांवों में आम निमंत्रण दे आता था. और शेर सुरमह पीने और हलवह खाने के लिए लोग जूक दर जूक उसके घर आते थे. हर रात दो तीन गांवों की स्थापना मामा के घर का सामान्य था. जो लोग किसी काम से शहर आते थे और किसी वजह से उनकी अंतिम बस छूट जाती थी या वापस गांव जाने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं होता था. वह मामा के घर चले जाते थे. मामा के घर में एक विशेष कक्ष अतिथि था. वहाँ इस तरह के लोगों के लिए सोने का विशेष प्रबंध रहता था. रात को वह मामा के मेहमान खाने में आराम करते और सवेरे चाय और हल्का नाश्ता कर वापस अपने घर चले जाते थे.
मामा ने जब अपनी बड़ी बेटी की विवाह  की थी तो उसके घर विवाह  में ग्रामीणों की भीड़ सबसे अधिक थी. मामा ने उनके लिए खाने का अलग व्यवस्था की है. वे अपने साथ इतने उपहार लाए थे कि बेटी के दहेज में एक एक वस्‍तु  दो दो तीन तीन देने के बाद भी बहुत सी बच गई थी.
किसी सप्ताह मामा अगर गांव नहीं आता तो सारे गाँव में हलचल मच जाती थी. "मामा इस सप्ताह नहीं आया, क्या बात है? जाकर पता लगाना."
जो भी इस गाँव से दूसरे दिन शहर जाने वाला होता था उसे यह जिम्मेदारी सौंपी जाती थी और वह वापस आकर सारे गाँव को इस बारे में बताता था.
"मामा बीमार है."
"मामा एक रिश्तेदार की विवाह  में अन्य शहर है."
भक्ति मामा में कोट कोट कर भरी हुई थी. जिस जगह नमाज़ का समय हो जाता कहीं से पानी मांग कर वुज़ू बनाकर वहीं नमाज़ के लिए खड़ा हो जाता था. बल्कि कुछ घरों के लोगों ने तो मामा की नमाज़ के लिए व्यवस्था कर रखे थे.
वह गांव जहां मसजदें थीं या मुसलमान थे. गांवों की मस्जिदों में अगर पेश इमाम नहीं होता था तो अस्र और ज़ोहर की नमाज़ें मामा की पेश इमामी में अदा की जाती थीं. गांवों में अगर किसी मुसलमान की मौत हो जाती तो उसकी मय्यित को स्नान देने, कफनाने और नमाज़ जनाज़ा अदा कर दफना काम मामा अंजाम देता था.
ग्रामीणों के अपने अपने काम होते हैं. खाली समय में भी चर्चा अपने विषय होते हैं. घरेलू मामलों, खेती के मामले, बैंक, ऋण झंझट के किस्से, ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव आदि पर बहसें. आम दिनों क्या हो रहा था गांवों के कुछ लोगों को ही मालूम रहता है. वह भी केवल गांवों में जहां इक्का दकह अखबारों पहुँच जाते थे. या जिन लोगों के पास टीवी और रेडियो था वह समाचार सुनकर इस बारे में अन्य लोगों को बता देते थे. उन दिनों पता चला कि मुसलमानों की किसी बड़ी मस्जिद को शहीद कर दिया गया जो दरअसल राम जन्मभूमि थी. इतनी बड़ी ख़बर भी गांवों में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुआ. फिर समाचार आने लगीं कि देश के कई हिस्सों में प्रतिक्रिया में दंगे हो रहे हैं. बम्बई में खासकर बहुत प्रतिक्रिया है. अधिक वे नहीं जान सके.
इन दिनों भी मामा सामान्य रूप से आता था. कुछ लोग इस से इन मामलों पर चर्चा करते थे. मामा को जो मालूम होता मामा अपनी जानकारी के अनुसार उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश करता. उस दिन सामान्य रूप से मामा गांव आया था. और गाँव से अंडे और मरगयाँ खरीद कर दूसरे गांव की तरफ जा रहा था. अचानक एक लड़के ने आकर गांव में खबर दी.
"विष्णु पुराडकर, भास्कर पाटिल, किशन जाधव, अतुल जाड़ियह ने गांव के बाहर मामा को घेर लिया है. उनके हाथों में हथियार हैं. एक के हाथ में तलवार है. वह जे श्री राम, जे भोानी और जे शिव जी के नारे लगाते हुए मामा पर हमला कर रहे हैं और मामा अपने बचाव की कोशिश कर रहा था.
यह सुनना था कि लगभग सौ के समीप  लोग मामा की मदद के लिए भागे थे. उन्होंने जाकर न केवल मामा को बचाया था, बल्कि उन लोगों को हथियारों के साथ पकड़ भी लिया था. मामा कड़ी घायल था.
तुरंत मामा को अस्पताल ले जाया गया. और उन लोगों को पुलिस स्टेशन.
"उन लोगों ने इन हथियारों के साथ िबदालगनी कृपा रहमान उर्फ मामा पर कातिलाना हमला किया था. हम सब इसके गवाह हैं उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर उनके विरूध  सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए." दस बारह लोगों ने पुलिस स्टेशन में गवाहयाँ करें थीं.
इन सब को हिरासत में ले लिया गया. पुलिस को चेतावनी किया गया था कि अगर उन लोगों के साथ नरमी से पेश आया गया या उन्हें रिहा कर दिया गया तो उसके विरूध  आंदोलन जाएगी. हमलावरों के पक्ष में बोलने केलिए लोगों की पार्टी के लोग ही आए थे परंतु उनके विरूध  बोलने के लिए चारों ओर से लोग आए थे. हमलावरों को पुलिस के हवाले करने के बाद मजमा अस्पताल में इकट्ठा जहां मामा का उपचार किया जा रहा था.
मामा को आवश्यक खून देने के लिए कतारें लगी हुई थीं. चारों ओर से अस्पताल के डॉक्टरों और नर्सों पर दबाव डाला जा रहा था कि मामा का अच्छी तरह इलाज करें. उसके इलाज में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए. अगर उसका इलाज नहीं हो सकता तो वह कह दें हम मामा के जिले के सरकारी अस्पताल ले जाएंगे. या बड़े से बड़े निजी अस्पताल ले जाएंगे. परंतु डॉक्टरों द्वारा उन लोगों को संतोष दिलाया जा चुका था कि मामा का इलाज यहां हो जाएगा. चिंता करने की और घबराने की कोई बात नहीं है.
मामा को ऑपरेशन थिएटर से लाकर वार्ड में रख दिया गया. वह बेहोश था. उसके चारों ओर भीड़ थी. डॉक्टर आदि लोगों को मामा के पास से हट जाने के लिए और वार्ड से बाहर जाने के लिए बार बार अपील कर रहे थे परंतु मामा को देखना चाहते थे.
दो घंटे बाद मामा ने आंख खोली. अपने चारों ओर देखा. अपने आसपास खड़े चेहरों को पहचाना. एक ननवा सी मुस्कान उसके चेहरे पर उभरी. और नहीफ आवाज़ में बोला.
"मैं बिल्कुल ठीक हूँ. उन लोगों को पुलिस के हवाले न करना. वह नादान हैं, उन्हें नहीं मालूम वह क्या कर रहे हैं." सबसे चुपचाप मामा को देख रहे थे. उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि पलंग पर मामा लेटा या कोई देवता.

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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