Followers

Powered by Blogger.
RSS

Hindi Short Story Doosri Baad By M.Mubin

कहानी दूसरी बाढ़ लेखक एम मुबीन
बाढ का पानी उतरा तो वह सुरक्षित स्थल से निकलकर अपने घर की ओर चल दिया ।
जैसे जैसे वह आगे बढ़ता जाता था उसका कलेजा मुंह को आता था। आसपास के घरों की दीवारों पर उतर चुके पानी के चिन्‍ह इस बात की गवाही दे रहे थे कि वहां कितना पानी था और उस स्थान पर पानी के उस स्तर से वह आनुमन लगाने का प्रयत्न कर रहा था कि उसके घर में कितना पानी होगा ।
पानी का आनुमन लगाने की जरूरत भी नहीं थी । सहायता करने वालों ने उसे और उसके परिवार वालों को घर की छत के पतरे और कौवलू तोडकर बाहर निकाल था यानि उस समय तक घर के दरवाजे से उपर तक पानी था यह तो उसकी आंखो देखी बात थी ।
वहां से निकलकर सुरक्षित शरणस्थल पर आने के बाद वहां क़्या क़्या घटा और घर पर क़्या बीती वह इस बात का केवल आनुमन लगा सकता था ।
हर कोई वापस आकर अपने अपने घर की स फाई में लगा हुआ था ।
विचित्र सा दृश्य था ।
लेग बाढ के पानी से खराब हुई चीजें बाहर पेंकक रहे थे सडकों पर खराब हुई चीजों का ढेर लगे हुए थे ।
उन खराब चीजों में क़्या नहीं था ? बाढ पीडित लेगों की सारी जिंदगी उन खराब चीजों में समाई हुई थी । बिस्तर, ताकिये, गुदाडियां, चादरें, गादी, ताकिए भीगकर इतने खराब हो गए थे कि सूखने के बाद भी उपयोग के योग्य नहीं बन सकते थे ।
अनाज, दालों, मसालों में बाढ़ का गंदा पानी भर गया था और वे खाने के योग्य नहीं रही थी । घरों के बाहर उनके भी ढेर लगे थे ।
कुछ लेगों ने कडी मेहनत का एक एक पैसा जमकरके पूरे साल का अनाज, गेहूं चावल, शक़्कर इत्यादी जम कर रखा था । शहर में पता नहीं किस चीज के दाम कब आसमन पर पहुंच जाए इसलिए सुरक्षात्‍मक कदम के तौर पर कुछ लेग जब ये चीजें कुछ सस्‍ती होती है अपने छोटे छोटे घरों में सालभर का स्टाक जमकर लेते है ।
परंतु बाढ के पानी ने उन्‍हे किसी योग्य नहीं रखा था और उन चीजों का ढेर घरों के बाहर लगा था जिससे एक सिर फाड देने वाली दुर्गंध उठा रही थी जो पूरे क्षेत्र पर छाई हुई थी ।
स्‍कूल जाने वाले बच्चों की पुस्‍तकें, कापियां, बस्ते बाढ़ के पानी में भीगकर किसी योग्य नहीं रही थी । कुछ बच्चे उन कापियों, पुस्तक को धूप में सुखाकर उपयोग योग्य बनाने का असफल प्रयत्न कर रहे थे तो कुछ उनके खराब हो जाने पर रो रहे थे । जैसे जैसे वह आगे बढ रहा था आसपास के दृश्य देखकर उसकी आखों के सामने आंधकार छा रहा था और उन दृश्यों के प्रकाश में अपने घर की कल्‍पना करके उसका दिल बैठा जा रहा था ।
आंत वह अपने घर पहुंच गया ।
बाहर ही उसे वह दृश्य दिखाई दिया जिसकी कल्‍पना उसने पहले से कर रखी थी और जिस दृश्य को देखने के लिए उसने स्वयं को तैयार कर रखा था ! उसका घर कहा बाकी बचा हुआ था । घर का केवल एक ढांचा बचा हुआ था।
पूरी चाल की स्थिती एक सी थी ।
छतें गायब थीं । दरवाजे, खिडकियां टूटे हुए थे, या टूटकर भीतर बाहर गिरे हुए थे । छोटे से आंगन में एक एक फिट तक कींचड था । कींचड में चलता टूटे दरवाजे को एक और ढकेलकर वह अपने 10 न् 12 के घर में दाखिल हुआ। वहां कुछ भी तो नहीं बचा था और जो कुछ बचा भी हुआ था तो वह किसी योग्य नहीं था ।
कोने का पलांग पानी के जोर से बहकर कमरे के बीचो-बीच आ गया था और उस पलांग पर के बिस्तर भीगकर सह रहे थे । उनसे सिर फाड देने वाली दुर्गंध उठा रही थी ।
भीतर घुटनों तक गंदा कीचड था जिसकी दुर्गंध सिर फाडे जा रही थी।
एक आशा से वह चलता वह उस कोने में आया जहा उसने अपने परिवार के लिए साल भर का अनाज चावल और गेहूं ले रखा था । दोनो थैले उसी कोने में थे ! जैसे ही उन्‍हे उसने खोल दुर्गंध का एक भा फा उसका दिमग फाड गया ।
बाढ के गंदे पानी में भीगने के बाद वह अनाज किसी योग्य नहीं था । घर में वजनी सामन बचा हुआ था हलका और छोटा छोटा सामन बाढ के साथ बहकर पता नहीं कहा चल गया होगा ।
छत के उपर से पानी गया था, जो छत के पतरों को बहा ले गया था तो भाल उन छोटे छोटे सामन की क़्या बिसात थी जो वह बाढ के पानी के जोर के सामने टिक सकता था । चाल की दीवारें मजबूत थीं इसलिए घर का ढांचा बचा रहा, वरना आगर दिवारें मजबूत नहीं होतीं तो वे भी ढह जाती और कुछ भी बच नहीं पाता ।
उसने लोहे के पलांग पर भीगी गादी को एक और थोडा सा सरकाया और पलांग पर सिर पकडकर बैठा गया ।
वह पागलों की तरह अपने छोटे से ध्वंस संसार को देख रहा था ।
दस बारह वर्ष में कितने कष्‍टों से एक एक चीज उसने जमा की थी और कुछ घंटो की बाढ उन सबको बहा ले गई थी ।
दस बारह वर्षो से वह वहां रह रहा था ।
इन दस बारह वर्षों में वहां कभी बाढ नहीं आई थी । हर साल में दो-तीन बार पानी जरूर उसके घर में घुस आता था और कभी कभी उसके और उसके परिवार वालों को कमर तक के पानी में दिन या रात गुजारनी पडती थी।
मामला बस यहीं तक सीमित रहता था ।
परंतु इस बार किसी ने आनुमन भी नहीं लगाया होगा कि सामन्यता कमर तक रहनेवाल पानी इस बार छत के उपर से चल जाएगा और छतों तक को बहा ले जाएगा तो भाल उसके आगे घर का सामन किस तरह सुरक्षित रहेगा।
उसने बचपन में इस तरह की बाढ अपने गांव में देखी थी कुछ जिस में उनके घर खेत सब बह जाते थे । वह उनके लिए सामन्य बात थी । जब वह वहां रहने आया था तो उसे उस बात से संतोष मिल था कि इस शहर में गंगाजी सी कोई नदी नहीं है । केवल एक खाडी है ।
खाडी में ज्वारभाटा के समय पानी का स्तर बढता है तो खाडी एक नदी सी प्रतीत होती है और जब पानी उपर जाता है तो कोई नाला सा लगती है ।
खाडी किनारे उसने एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया और अपने छोटे से परिवार के साथ जीवन आरंभा किया । अच्‍छा काम था, अच्‍छी आमदनी थी इसलिए खाली कमरा धीरे धीरे जीवन आवश्यक चीजों से भरने लगा । वर्ष बीतने के बाद परिवार के सदस्य भी बढने लगे । अब वे छ सदस्यों का परिवार था । पातिपत्‍नी और चार बच्चे दो लडके, दो लडाकियां ।
घर के समीप खाडी पर एक पुल था जो उस क्षेत्र को शहर से जोडता था । वह क्षेत्र एक अच्‍छा खासा शहर बन गया था ।
सब कुछ ठीक था केवल वर्षा के दिनों में थोडा सा कय्र्ट होता था ।
वर्षा इतनी होती थी कि वह अपने गांव में ऐसी तूफानी वर्षा की कल्‍पना भी नहीं कर सकता था । दो तीन दिन निरंतर होने वाली वर्षा से खाडी के जल का स्तर बढ जाता था और फिर ज्वार भाटा की स्थिति में समुद्र का पानी भी खाडी में घुस आता था । जिससे जल स्तर और आधिक बढकर उनके घर में पानी घुस आता था और जब तक ज्वार भाटा की स्थिति सामन्य ना हो उनके घर में कमर तक पानी रहता था ।
वे अपने परिवार वालों के साथ अपनी उंची सी पलांग पर आराम से बैठा रहता और घर में पानी भारा रहता था ।
फिर धीरे धीरे पानी, उतरने लगता तो वह पत्‍नी और बच्चे घर की सफाई में लग जाते ।
परंतु उस बार स्थिति विपारित थी ।
आठा दिन से वर्षा का तार नहीं टूट रहा था । खाडी का जलस्तर बढता ही जा रहा था । ज्वार की स्थिति में पानी का घर तक पहुंच जाता था । भाटा कि स्थिति में भी स्तर पर कोई अंतर नहीं पडता था ।
पूरे क्षेत्र में तुफानी वर्षा हो रही थी । समीप की नदी पर बंधा बांध भर गया था और उसका पानी छूट गया था जिसके कारण जलस्तर आचानक बढ गया ।
सामन्य स्थिति में कमर तक रहनेवाल पानी कांधे तक पहुंच गया । इस स्थिति से घबराकर उसके परिवारवालों ने सुरक्षा के लिए भीतर बनाए मचान पर शरण लिया । जब मचान तक भी पानी पहुंच गया तो वह घबरा उठा । पानी दरवाजे के उपर पहुंच गया था । दरवाजे से बाहर निकलने का तो अब सवाल ही नहीं उठता था । यदि इसी तरह पानी बढता रहा तो उस कमरे में ही, पानी मे उसकी और उसके घर वालों की कब्रे बन जाएंगी । जान बचाना हो तो तुरंत यहां से भाग जाना चाहिए । परंतु बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था । एक ही रास्ता था छत के पतरे तोडकर छत पर पहुंच जाया जाए शायद कोई मदद आ जाए । सबने मिलकर छत का एक पत्रा तोडकर इतनी बडी जगह बना ली कि छतपर पहुंचा जाए और वे उस छेद से छत पर पहुंच गए ! बाहर विचित्र दृश्य था ।
हर कोई अपने परिवार के साथ छत पर बैठा सहायता के लिए चीख रहा था ।
चारों ओर पानी ही पानी था । पूरा क्षेत्र पानी मे डूबा था । शहर को मिलने वाल पुल तो कभी का पानी में डूब चुका था । शहर से संपर्क टूट गया था ।
वर्षा निरंतर हो रही थी ।
स्वयंसेवी संस्थाएं और स्वयंसेवक रास्सियों और टायरों की सहायता से पानी में फंसे लेगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का पुण्यमय कार्य कर रहे थे ।
‘‘इस तरह कितने लेगों को आप लेग बचा पाएंगे ।’’
‘‘सहायता के लिए बोट क़्यों नहीं मंगा रहे है ’’
‘‘वर्षा के कारण सारे टेलिपकोन बंद हो चुके है । एक - दो जो चालु है उनसे सरकारी आधिकारियों से निरंतर संपर्क बनाकर यहां की स्थिति से आवगत कराकर उनसे सहायता मंगी जा रही है । परंतु दूसरी ओर से कभी रूखा व्यवहांर, कभी झूठी तसल्‍ली और कभी गालियां मिल रही है । एम. एल. ए. साहब से संपर्क किया गया तो उन्‍हों आश्वासन दिया कि वे बोट भेज रहे है। फिर पता चल कि बचाव काश्तियां जिलहे से आ रही है, निकल चुकी है, रास्ते में ट्रेफिक में फंसी है । आपके क्षेत्र में सहायता के लिए निकल गई है परंतु अभी तक कोई बोट नहीं आई । यदि उन पर भारोसा करके बैठे तो पानी में फंसे हजारो लेगो के जीवन संकट में पड जाएंगे । इसलिए अपनी तौर पर लेगो के प्राण बचाकर उन्‍हे सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे है ।’’
खुदा खुदा करके उसे और उसके परिवार वालों को टायरों के द्वारा सुरक्षित स्थानोंपर पहुंचा दिया गया ।
शरणस्थल पर उसकी तरह हजारों लेग और परिवार थे जो बाढ के कारण बेघर हुए थे ।
लेग भूखे और प्यासे थे । बच्चे भूख और प्यास से बिलक रहे थे ।
‘हमें भूख लगी है । हमें खाने को रोटी दो ।’
‘हम दो दिन से भूखे है ।’
बच्चे रोने पीटने लगे तो कुछ स्वयं सेवको को होश आया वह वडापाव ले आए और उन बेघरों को बाटने लगे ।
परंतु वडापाव से भाल क़्या किसी की भूख मिट सकती थी । तब यह तय किया गया की उनके भोजन का प्रबंध किया जाए । कुछ उदार दिल वालों ने अपने जिम्‍मे कुछ लेगों का भोजन ले लिया । शेष के लिए चंदा करने का तय किया गया । कुछ लेग उदार दिल से चंदा देते तो कुछ बहाने बना देते ।
‘‘क़्यां करे आप तो जानते है कितनी मंदी है और उपर से यह बाढ हमरा तो सबुकछ भंग हो गया है ।’’
दो दिन शरणार्थी शिबिर में गुजरे । कभी क्राने के लिए मिल जाता कभी आधा पेट मिलता ।
अपने घर संसार और उस का क़्या हुआ होगा सोच सोचकर ही आंखों में आसूं आ जाते थे ।
स्थानिक नेता और स्वयंसेवक आकर सांत्वना देते
‘‘आप लोग धीरज रखिए आपका जो भी नुकसान हुआ है हम सरकार से दिलने का प्रयत्न करेंगे ।’’
उनकी आंखो से आशा बंधती परंतु यह सोचकर आखों के सामने अंधेरी छा जाता कि अभी तक तो कोई भी बडा नेता, मंत्री या सरकारी आधिकारी उनकी स्थिति देखने नहीं आया है फिर भाल उन्‍हे सरकारी सहायता किस तरह मिल सकती है ?
अंत जब बाढ का पानी उतरा तो वह अपने घर आया और वह अपनी आखों से अपने ध्वसं संसार, जीवन भर की कमई की बर्बादी देखने लगा ।
आचानक एक शोर को सुनकर वह चौका । बाहर आकर देखा तो एक कैमरा टीम थी जो बाढ से शतिग्रस्त मकानों के चित्र ले रही थी । उनके पीछे तमशाई थे । वे उसके घर भी आए ।
‘ओह सब कुछ बर्बाद हो गया’ मुख्य कैमरा मेन ने कहा और वह घर की हर कोने से फिल्‍म उतारने लगा ।
‘यह आपका घर है ?’ उसने पूछा ।
‘हा’ वह बोल ।
‘आप यहां खडे हो जाइए आपकी भी फिल्‍म उतारता हूं ’ कैमरामेन बोल । ‘‘इस तरह नहीं इस तरह हा चेहरे पर दु:ख के भाव होना चाहिए जिससे पता चले कि सबुकछ बर्बाद हो जाने पर आप कितने दु:खी है . ओफ.. आपके चेहरे से यह पता ही नहीं चल रहा है कि इस नुकसान से आपको दु:ख हुआ है। जरा चेहरे को दु:खी बनाईए ।’’
वह उसे निर्देश देने लगा तो उसे क्रोधआ गया। वह बाढ की तबाही की फिलम उतारने आया है या किसी फिलम की शूटिंग कर रहा है । जो निर्देशक की तरह निर्देश दे रहा है ।
‘हा, अब आप कहिए मेरा सारा संसार तबाह हो गया । अब तक कोई भी सियासी नेता, सरकारी आफिसर हमरा हाल पूछने नहीं आया, ना हमें कोई मदद आई । हम दो दिन से भूखे है !’ कैमरामौन उससे बोल ।
‘जब हम जीवन और मॄत्यु का संघर्ष कर रहे थे उस समय नेता और सरकारी आधिकारी अपने बंगलों में चैन की नींद सो रहे थे । हमरी सहायता के लिए लाईफ बोटे तक नहीं भेजी गई । झूठी तसल्‍ली दी जाती रही कि मदद भेजी जा रही है । आगर हम उनकी सहायता के भारोसे रहते तो यह जो हमारी जिंदगी भर ती कमई बहकर गई है ना, उसके साथ हम भी बहकर चले जाते’ वह पकट पडा ।
‘वाह क़्या आंदाज है’ कैमरा मन उछल पडा । ‘‘यही आंदाज तो चाहिए था । यह पूरी फिल्‍म टी.वी. पर लगाउंगा आज सात बजे की न्यूज देखना ना भूलना ।’’
‘‘साहब यहां जीने के लाले पडे है, जीवन बचाने का संघर्ष चल रहा है तो भाल टी.वी. कहा से देख सकते है ।’’
टी.वी. कैमरा टीम दूसरे घर के चित्र लेने लगी उसके पीछे दूसरी भीड आ रही थी ।
‘देखा सत्तारूढ पक्ष का रवैया’ एक नेता जो विपक्षी दल का नेता लग रहा था चीख रहा था ‘‘आप लेगों ने उन्‍हे अपने किमती वोट देकर बहुमत से विजयी किया था । देखा उनका रवैया । आप बर्बाद हो गए है, परंतु उनके पास आपकी खबर लेने का समय नहीं है । मानवता के नाम पर वे आपका हाल पूछने भी नहीं आए तो आपकी सहायता करना तो दूर उन्‍हे भ्रळाचार करके अपने लिए रूपये उगाने, लूटने से फुर्रसत मिले तो वे आपके पास आएंगे । यह हमरी पार्टी है जिसका हर सदस्य, हर वर्कर हर बाढ पीडित के पास पहुंचा है और उसने सहानुभूति के दो बोल बोलकर ही सही आपका दर्द बांटने की कोशिश की है ।’
उसके बाद कुछ आखबार वाले और स्वयंसेवी संस्था से संबंधित लोग आए और वे नुकसान की जानकारी मंगने लगे ।
वह बताने लगा कि उसका क़्या क़्या नुकसान हुआ है और बाढ में उसका क़्या क़्या बह गया है ।
‘‘तो तुम्‍हारे घर में टी.वी. और टेप भी था ।’’
‘‘क़्यों आपको शक है । आजकल तो यह सामन्य सी चीजे है ।’’
‘‘नहीं नहीं मैंने यूंही पूछ लिया’’ कहते वह कुछ लिखने का प्रयत्न करने लगा ।
‘‘आप यहां खडे हो जाईए मैं आपकाऔर आपके घरका एक फोटो लेना चाहता हूं’’ कहते एक फोटोग्रापकर ने उसे एक जगह खडा होने के लिए कहा ।
फिर वह उसे इस तरह आलग आलग आंदाज में खडा करके आलग आलग कोनों से देखने लगा जैसे वह किसी फोटो स्टूडियों मे उसका फोटो खेंच रहा हो ।
‘‘नहीं खिंचवाना है मुझे फोटो’’ वह चीख उठा । ‘‘आप मेरे तबाह घर का फोटो ले रहे है या मुझे कोई मडल समझकर मेरे फोटो उतारने की कोशिश कर रहे है ।’’
‘‘क़्या गजब करतो हो करमू’’ एक पडोसी बोल । उन्‍हे फोटो खेंचने दो यह फोटो तुम्‍हारे नुकसान का सबूत होगा । जो तुम्‍हें सरकारी सहायता दिलने में काम आएगा ।
‘‘जीते जी तो सरकार हमे कोई सहायता नहीं दे सकती । हा आगर मर जाते तो जरूर देती । दुनिया का दस्तुर है आधमरों को कोई सहायता नहीं देता, कोई नहीं पूछता, हा मरनेवालों की लश पर आंसू बहाकर हमदर्दी जताने सब पहुंच जाते है ।’’
उस की बात सही सिद्ध हो गई । कोई सरकारी आफिसर आया था और वह चीख रहा था ।
‘‘क़्या नुकसान नुकसान लगा रखा है । यह बताओ क़्या कोई मरा भी है?’’ खाडी के किनारे घर बनाओगे तो यही सब होगा । सरकार खाडी से 70 मीटर लगकर हुए किसी भी नुकसान की कोई जिममेदार नहीं है ।
उसका तो मन चाहा जाकर उस सराकारी कारिन्दो का मुंह नोच ले ।
‘‘तो तुम क़्या समझते हो हमें मर जाना चाहिए था । हम जिंदा बच गए इसलिए यह कोई नुकसान नहीं हुआ । 70 मीटर तक सरकार की कोई जिममेदारी नहीं । अंधे होगे तभी तो दिखाई नहीं दे रहा है यह क्षेत्र खाडी से 150 मीटर से भी आधिक दूर है.....’’
‘‘खाडी को पारकर उसकी जमीन पर अनुचित मकान बना रहे हो तो पानी के बहाव के लिए जगह कहा से रहेगी । इसके कारण हो यही सब होगा’’ वह सरकारी कारिन्दा चीख रहा था ।
‘‘खाडी की जमीन पर अनुचित मकान बन रहे है । यह तुम्‍हें मलूम है परंतु तुम उसके विरूद्ध कार्यवाही नहीं करते क़्योंकि इसके बदले में पहले ही तुम लेगों की जेबें भर जाती है ।’’ वह जोर से चीखा ।
‘‘हा हा खाडी पर बनने वाले अनुचित मकानों की बात करते हो जब वे बन रहे होते है तो क़्यों नही तोडते, तुम्‍हें तुमहारा हिस्सा मिल जाता है इसलिए ना’’ सब चीख उठे । सरकारी आदमी के चेहरे पर हवाईयां उडने लगीं ।
‘‘हम पर झूठे आरोप लगाते हो देख लूंगा । एक एक को देखता हूं यहां किस तरह कोई सरकारी मदद आ पाती है । ऐसी रिपोर्ट लिखूंगा कि सरकार यह पूरा क्षेत्र अनुचित इमरते घोषित करके तोड देगी’’ वह दहाडा ।
‘‘तब तक हम तुझे जिंदा ही नहीं रखेंगे’’ कहती भीड उसे मरने के लिए दौडी तो वह सिर पर पैर रखकर भागा ।
थोडी देर बाद सत्ताधारी पक्ष के कार्यकर्ता आकर लेक़्चर झाडने लगी। ‘‘आप लेगों का जो नुकसान हुआ है उस का विवरण हम सरकार को देकर आपको सहायता दिलने का पूरा प्रयत्न करेंगे ।’’
‘‘ऐसा है तो फिर आपके मुख्यमंत्री हमरे क्षेत्रमें क़्यों नहीं आए । औपचारिकता निभाने आए और चले गए ।’’ किसी ने कहा तो वे चुपचाप हो गए।
एक टोली जाती तो दूसरी टोली आ जाती थी ।
झूठी सांत्वना देते, वादे करते, घावों को कुरदते, वास्ताविकता जो आलग ही थी । उसे लगा पहेली बाढ तो उसके जीवनभर की कमई, घर संसार बहा ले गई थी ।
परंतु यह झूठी सहानुभूति, सांत्वना, वादों की दूसरी बाढ
उसका आत्‍मसम्‍मान बहाकर ले जाएगी और इसके मन, मस्तिष्‍क को आहत कर देगी ।...........
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments:

Post a Comment